दिल की बात दिल ही जाने !!!! सचमुच एक पल हँसता है तो अगले ही पल रूठ जाता है. जिंदगी यही समझने में निकल जाती है कि ये नन्हा दिल चाहता क्या है? कभी भरी महफ़िल में तनहा मंडराता रहता है तो कभी तन्हाई से घबराकर भीड़ में छुप जाता है. जरा सा झिड़क दो तो रो पड़ता है और हौले से पुचकारो तो मुस्कुरा उठता है! खिलखिलाता है तो मानो सारी सृष्टि ही भाव-विभोर होकर नांचने लगती है और रोता है तो राह चलते बादल का भी ह्रदय द्रवित हो उठता है! उदास होता है तो सारे रिश्ते बेमानी लगते हैं और खुश होता है तो उन्हीं रिश्तों पर मर मिटता है! क्षण क्षण नूतन रूप लेकर मानो हमारे साथ आँख मिचौनी खेल रहा हो. उसकी अठखेलियों पे कभी उसे दुलार करने का जी करता है तो कभी हठ करने पर निष्ठुर मन उसे सजा भी सुना देता है. डरा सहमा दिल बेचारा तब किसी भीगे हुए पंछी के समान कोने में दुबक जाता है...फिर तो अपना ही कलेजा मुंह को आ जाता है. आँखों से आंसूं टपकने लगते हैं और झट से गोद में लेकर हम उसके घाव सहलाने लगते हैं! उसको छोटी से छोटी चोट भी लगे तो हमसे सहन नहीं होता. दिल की फरमाइश हो तो हम आसमान छूने का हौसला रखते हैं.. ..उसकी इच्छा हो तो हम हर चुनौती का सामना करने को तत्पर होते हैं. दिल धडके तो जिंदगी हसीन लगती है, वो रुक जाए तो जिंदगी रुक जाती है! शायद इसीलिए उम्र के साथ हम तो बढ़ते जाते हैं पर दिल सदा बच्चा ही रहता है...निर्मल, निश्छल, चंचल !!!